- Joined
- Dec 12, 2024
- Messages
- 314
- Reaction score
- 0
- Points
- 16
हेलो गाइस, मेरा नाम लॅविश है. मैं देल्ही का रहने वाला हू. ये कहानी तब की है जब मैं 1स्ट्रीट एअर में जस्ट एंटर हुआ था. मैं पढ़ने में बहुत वीक था, तो मेरे पेरेंट्स ने मुझे सोसाइटी में रहने वाली नफीसा के पास पढ़ने भेज दिया था. नफीसा एक 30 साल की शादी-शुदा औरत थी, जो अपने पति और देवर के साथ रहती थी.
नफीसा अपने ही घर पे सब को पढ़ती थी. मेरे कॉलेज में होने के कारण हम 5 बच्चो को 2 घंटे पढ़ती थी. सो मोस्ट्ली बुरखे में रहती थी. उसमे भी नफीसा के चूतड़ मोटे-मोटे अलग दिखते थे.
1 महीना बीट गया, और मुझे ये बात समझ आ गयी थी, की नफीसा जब भी बुरखे में ना हो, तो उसका पति और देवर दोनो ही घर पे नही होते. फिर मैने रोज़ टुटीओन 5 मिनिट पहले जाना शुरू कर दिया ताकि नफीसा को अकेले में पकड़ साकु. नफीसा जब भी कुरती और पाजामा पहनती थी, तो उसकी गांद और चुचियाँ अलग ही टाइट दिखती थी.
कुछ दिन सबसे पहले टुटीओन पहुचने के बाद मेरी मेहनत सफल हुई, और नफीसा ने पिंक कलर की कुरती पहन के गाते खोला. मैं देखते ही समझ गया था, की आज नफीसा अकेली थी घर में.
नफीसा: क्या बात है लॅविश, आज-कल तो तुम बहुत जल्दी आते हो टुटीओन? पहले तो रोज़ आधा एक घंटा लाते आते थे.
मैं (मैं नफीसा की गांद देखते हुए उसके पीछे-पीछे रूम में जाता हू): हा माँ, आप हो ही इतनी मस्त क्या करू.
नफीसा: क्या मतलब?
मैं: मैं कह रहा था, की माँ आप बहुत अछा पढ़ती हो.
नफीसा: ज़्यादा नाटक मॅट करो. इतना ही पढ़ाई पे ध्यान होता तो तुम्हारे मार्क्स इंप्रूव तो होते. तुम्हारे मार्क्स जीतने थे उतने ही है.
मैं: फिर किस चीज़ में ध्यान है मेरा, आप ही बता दीजिए माँ.
नफीसा: अपने बॅच की लड़कियों पे. हर लड़की का नंबर लेके बैठे हो तुम. सब सुनती हू मैं. तुम्हे क्या लगता है मैं कुछ सुनती नही हू?
मैं: माँ वो तो बस डाउट पूछने के लिए नंबर लेता.
नफीसा: अपनी टुटीओन टीचर का नंबर है तुम्हारे पास?
मैं: हा माँ, मम्मी पास होगा.
नफीसा: तभी सिर्फ़ अम्मी फोन करती है तुम्हारी, की लॅविश के मार्क्स में कोई इंप्रूव्मेंट क्यूँ नही हो रही है.
मैं: मैं तो आपसे रोज़ मिलने आता हू माँ. आप मेरे से बात ही नही करती हो.
नफीसा: मेरे शौहर और उनके भाई घर पे ही रहते है. मैं उनके सामने कैसे बात करू? और जब वो नही होते है, तो बाकी स्टूडेंट्स होते है.
मैं: तो फिर आप मेरा नंबर ले लीजिए माँ, जब बात करने का मॅन हो तब कर लीजिएगा.
नफीसा: हहा, तुम्हारी इन्ही चिकनी चुपड़ी बातों से लड़कियाँ फ़ासस जाती है.
मैं (हेस्ट हुए पूछता हू): तो फिर आप फ़ससी की नही मेरी चिकनी चुपड़ी बातों में माँ?
नफीसा: बहुत बेशरम हो तुम. लड़कियों को छ्चोढो, अपनी माँ को भी अपना नंबर दे रहे हो हा.
मैं: तो फिर आप मेरी मम्मी से गलियाँ ही सुनो.
नफीसा: शूट उप! चलो बाकी बच्चे भी आते होंगे. किताब खोलो तुम चुप-छाप. बहुत टाइम बाद ऐसे बात करी किसी से हस्स के हहा.
मैं: तो फिर आज रहने दो ना माँ, आज मत पधाओ ना प्लीज़.
नफीसा: तो फिर क्या टेस्ट लू?
मैं: अर्रे वत्फ़… नही आज बातें करते है. बाकी बच्चो को वापस भेज दो.
नफीसा: नही-नही बचे आते ही होंगे, और उनके पेरेंट्स क्या बोलेंगे?
मैं: आप उन्हे बोल देना की आज आप वीक फील कर रही हो बहुत ज़्यादा, और पढ़ा नही पाओगे.
नफीसा: और तुम क्या करोगे यहाँ बैठ के?
मैं: आपसे बातें, और आपको मज़ा दूँगा.
इतने में डोरबेल बाज जाती है
नफीसा: लो बाकी बच्चे भी आ गये.
मैं: देख लो माँ, मैने आपको अछा आइडिया और मौका दोनो दिया है. बाकी आपकी मर्ज़ी है.
नफीसा बिना कुछ बोले उठ के गाते खोलने चली गयी.
वो उनको बोली: बच्चो आज मैं बहुत वीक फील कर रही हू. आज तुम लोग वापस चले जाओ प्लीज़. अगर मेरी तबीयत थोड़ी भी बेटर होती तो मैं पढ़ा देती, आप लोगों को पता ही है.
सब बच्चे माँ को गुड विशस देके चले गये, और मैं अंदर वेट कर रहा था. नफीसा गाते बंद करके अंदर आती है.
मैं: कहाँ गये आपके पढ़कू बच्चे?
नफीसा: हा-हा तुम्हे तो याद आ रही होगी ना उन लड़कियों की.
मैं: जब मेरे सामने इतनी खूबसूरत माल बैठी हो, तो मैं लड़कियों को क्यूँ याद करू?
नफीसा: बहुत बदतमीज़ हो तुम. अपनी मेडम को माल बोल रहे हो हा.
मैं (मैने नफीसा के पेट को छूटे हुए बोला): तो फिर क्या मोटू बोलू नफीसा जी को?
नफीसा (गुस्से में मेरे हाथ पे थप्पड़ मारते हुए): हे शादी-शुदा हू मैं, ओक. और घर के काम आंड ऑल बहुत काम होते है. उसमे तोड़ा पेट निकल गया है बस.
मैं: अर्रे-अर्रे मेरी माल तो गुस्सा हो गयी. माँ आप उन सब से सेक्सी लगती हो. आपका फिगर देख के तो कोई भी सेट हो जाए.
नफीसा: चुप बदतमीज़. ज़्यादा गांडी बातें करवा लो बस तुमसे, और मक्खन मत लगाओ समझे! और बार-बार माल-माल मत बोलो.
मैं: फिर क्या बोलू?
नफीसा: जब हम अकेले हो, नाम से बुला सकते हो.
मैं: और सब के सामने माल?
नफीसा (आराम से गाल पे थप्पड़ मारते हुए): तुम नही सुधार सकते हो.
मैं: तो फिर तू सुधार दे नफीसा.
नफीसा: सेकेंड नही लगते तुम्हे भी आप से तुम और तुम से तू में.
मैं: सीधा बोलो आपको तो मज़ा आ रहा है अपने आपको माल सुनते हुए.
नफीसा: चुप बेशरम, तुम नाम से ही बुलाओ बोला ना.
मैं: ओक-ओक नफीसा मेरी माल.
नफीसा (अपने सिर पे हाथ मारते हुए): तुम्हारा कुछ नही हो सकता है. चलो बताओ छाई पियोगे या कॉफी?
मैं: हहा.. छाई कॉफी से ज़्यादा मुझे दूध पीना पसंद है.
नफीसा: अछा रूको मैं लेके आती हू.
नफीसा गांद मतकते हुए किचन में चली गयी. थोड़ी देर में मैं भी किचन में चला गया. मुझसे कंट्रोल नही हुआ, और मैने पीछे से आके नफीसा की गांद पकड़ ली.
नफीसा (अचानक से उछली, और गुस्से में बोली): हट्तो!
मैं (मैने नफीसा को एक-दूं स्लॅब पे पुश कर रखा था): अब मैं अपनी नफीसा माल को पकड़ भी नही सकता?
नफीसा: नही, ये ग़लत है. वहाँ से हाथ हटाओ चुप-छाप.
मैं (नफीसा की चुचियों को पकड़ के मसालते हुए पूछा): फिर यहाँ हाथ रख लू?
नफीसा: आ लॅविश, ये क्या कर रहे हो? छ्चोढ़ दो मुझे.
मैं: अपनी नफीसा डेरी से दूध निकाल रहा हू.
नफीसा: लॅविश ऐसा मत करो. मैं किसी को नही बतौँगी, हट्तो और चले जाओ.
मैं: जब किसी को पता ही नही चलना है, तो सब करके ही जाता हू (नफीसा की कुरती को खींच के फाड़ दिया सामने से).
नफीसा: नही मेरा वो मतलब नही था. तुम ग़लत समझ रहे हो. ये क्या किया? मेरी कुरती फाड़ दी. मेरे शौहर वैसे भी कपड़े नही दिलाते है, और तुमने जो है वो भी फाड़ दी.
मैं: अभी तो बहुत कुछ फटेगा मेरी जान.
नफीसा: आह आहह, लॅविश बस करो, जाने दो.
मैं (पीछे से नफीसा की गांद में लंड रगड़ते हुए गर्दन पर किस कर रहा था): अभी नही मेरी जान.
नफीसा ने बोलना बंद कर दिया अपनी सिसकियाँ च्छुपाने के लिए. मैने नफीसा की पाजामी का नाडा खोला. नफीसा ने झट से अपनी पाजामी पकड़ ली, और गिरने से रोक ली. मैने डाइरेक्ट अपना हाथ नफीसा की छूट पे रखा, और सहलाना शुरू किया.
नफीसा: उफफफफ्फ़ बस करो लवी, आ मत करो.
मैं (अपनी उंगलिया नफीसा की छूट पे फेरते हुए): तेरी छूट तो ना नही बोल रही है. इतनी गीली हो चुकी है, और अभी भी तुझे रुकना है?
नफीसा: नाह, मत करो आ.
मैं: तेरी छूट इतने मज़े क्यूँ ले रही है?
नफीसा (नफीसा उछाल उठी, और मेरे हाथ को पकड़ के मोन करने लगी): आअहह नही.
मैं बिना रुके नफीसा की छूट में उंगली अंदर-बाहर करते हुए उसकी गर्दन को चूम रहा था. नफीसा की छूट का पानी मेरे पुर हाथ में था. वो आँखें बंद करके मेरे हाथो को हल्के से पकड़ते हुए सिसका रही थी.
नफीसा: लॅविश आ… बस करो.
मैं (मैने नफीसा की छूट से अपनी उंगली बाहर निकली, और नफीसा को छ्चोढ़ दिया): ठीक है माँ, आपको नही पसंद तो मैं जेया रहा हू.
मेरे छ्चोढते ही नफीसा फ्लोर पे गिर गयी. वो कुछ बोल पाती उससे पहले मैं चला गया.
फिलहाल के लिए इतना ही. अगले पार्ट में पढ़िएगा कैसे मैने नफीसा को अपनी रंडी बनाया.
नफीसा अपने ही घर पे सब को पढ़ती थी. मेरे कॉलेज में होने के कारण हम 5 बच्चो को 2 घंटे पढ़ती थी. सो मोस्ट्ली बुरखे में रहती थी. उसमे भी नफीसा के चूतड़ मोटे-मोटे अलग दिखते थे.
1 महीना बीट गया, और मुझे ये बात समझ आ गयी थी, की नफीसा जब भी बुरखे में ना हो, तो उसका पति और देवर दोनो ही घर पे नही होते. फिर मैने रोज़ टुटीओन 5 मिनिट पहले जाना शुरू कर दिया ताकि नफीसा को अकेले में पकड़ साकु. नफीसा जब भी कुरती और पाजामा पहनती थी, तो उसकी गांद और चुचियाँ अलग ही टाइट दिखती थी.
कुछ दिन सबसे पहले टुटीओन पहुचने के बाद मेरी मेहनत सफल हुई, और नफीसा ने पिंक कलर की कुरती पहन के गाते खोला. मैं देखते ही समझ गया था, की आज नफीसा अकेली थी घर में.
नफीसा: क्या बात है लॅविश, आज-कल तो तुम बहुत जल्दी आते हो टुटीओन? पहले तो रोज़ आधा एक घंटा लाते आते थे.
मैं (मैं नफीसा की गांद देखते हुए उसके पीछे-पीछे रूम में जाता हू): हा माँ, आप हो ही इतनी मस्त क्या करू.
नफीसा: क्या मतलब?
मैं: मैं कह रहा था, की माँ आप बहुत अछा पढ़ती हो.
नफीसा: ज़्यादा नाटक मॅट करो. इतना ही पढ़ाई पे ध्यान होता तो तुम्हारे मार्क्स इंप्रूव तो होते. तुम्हारे मार्क्स जीतने थे उतने ही है.
मैं: फिर किस चीज़ में ध्यान है मेरा, आप ही बता दीजिए माँ.
नफीसा: अपने बॅच की लड़कियों पे. हर लड़की का नंबर लेके बैठे हो तुम. सब सुनती हू मैं. तुम्हे क्या लगता है मैं कुछ सुनती नही हू?
मैं: माँ वो तो बस डाउट पूछने के लिए नंबर लेता.
नफीसा: अपनी टुटीओन टीचर का नंबर है तुम्हारे पास?
मैं: हा माँ, मम्मी पास होगा.
नफीसा: तभी सिर्फ़ अम्मी फोन करती है तुम्हारी, की लॅविश के मार्क्स में कोई इंप्रूव्मेंट क्यूँ नही हो रही है.
मैं: मैं तो आपसे रोज़ मिलने आता हू माँ. आप मेरे से बात ही नही करती हो.
नफीसा: मेरे शौहर और उनके भाई घर पे ही रहते है. मैं उनके सामने कैसे बात करू? और जब वो नही होते है, तो बाकी स्टूडेंट्स होते है.
मैं: तो फिर आप मेरा नंबर ले लीजिए माँ, जब बात करने का मॅन हो तब कर लीजिएगा.
नफीसा: हहा, तुम्हारी इन्ही चिकनी चुपड़ी बातों से लड़कियाँ फ़ासस जाती है.
मैं (हेस्ट हुए पूछता हू): तो फिर आप फ़ससी की नही मेरी चिकनी चुपड़ी बातों में माँ?
नफीसा: बहुत बेशरम हो तुम. लड़कियों को छ्चोढो, अपनी माँ को भी अपना नंबर दे रहे हो हा.
मैं: तो फिर आप मेरी मम्मी से गलियाँ ही सुनो.
नफीसा: शूट उप! चलो बाकी बच्चे भी आते होंगे. किताब खोलो तुम चुप-छाप. बहुत टाइम बाद ऐसे बात करी किसी से हस्स के हहा.
मैं: तो फिर आज रहने दो ना माँ, आज मत पधाओ ना प्लीज़.
नफीसा: तो फिर क्या टेस्ट लू?
मैं: अर्रे वत्फ़… नही आज बातें करते है. बाकी बच्चो को वापस भेज दो.
नफीसा: नही-नही बचे आते ही होंगे, और उनके पेरेंट्स क्या बोलेंगे?
मैं: आप उन्हे बोल देना की आज आप वीक फील कर रही हो बहुत ज़्यादा, और पढ़ा नही पाओगे.
नफीसा: और तुम क्या करोगे यहाँ बैठ के?
मैं: आपसे बातें, और आपको मज़ा दूँगा.
इतने में डोरबेल बाज जाती है
नफीसा: लो बाकी बच्चे भी आ गये.
मैं: देख लो माँ, मैने आपको अछा आइडिया और मौका दोनो दिया है. बाकी आपकी मर्ज़ी है.
नफीसा बिना कुछ बोले उठ के गाते खोलने चली गयी.
वो उनको बोली: बच्चो आज मैं बहुत वीक फील कर रही हू. आज तुम लोग वापस चले जाओ प्लीज़. अगर मेरी तबीयत थोड़ी भी बेटर होती तो मैं पढ़ा देती, आप लोगों को पता ही है.
सब बच्चे माँ को गुड विशस देके चले गये, और मैं अंदर वेट कर रहा था. नफीसा गाते बंद करके अंदर आती है.
मैं: कहाँ गये आपके पढ़कू बच्चे?
नफीसा: हा-हा तुम्हे तो याद आ रही होगी ना उन लड़कियों की.
मैं: जब मेरे सामने इतनी खूबसूरत माल बैठी हो, तो मैं लड़कियों को क्यूँ याद करू?
नफीसा: बहुत बदतमीज़ हो तुम. अपनी मेडम को माल बोल रहे हो हा.
मैं (मैने नफीसा के पेट को छूटे हुए बोला): तो फिर क्या मोटू बोलू नफीसा जी को?
नफीसा (गुस्से में मेरे हाथ पे थप्पड़ मारते हुए): हे शादी-शुदा हू मैं, ओक. और घर के काम आंड ऑल बहुत काम होते है. उसमे तोड़ा पेट निकल गया है बस.
मैं: अर्रे-अर्रे मेरी माल तो गुस्सा हो गयी. माँ आप उन सब से सेक्सी लगती हो. आपका फिगर देख के तो कोई भी सेट हो जाए.
नफीसा: चुप बदतमीज़. ज़्यादा गांडी बातें करवा लो बस तुमसे, और मक्खन मत लगाओ समझे! और बार-बार माल-माल मत बोलो.
मैं: फिर क्या बोलू?
नफीसा: जब हम अकेले हो, नाम से बुला सकते हो.
मैं: और सब के सामने माल?
नफीसा (आराम से गाल पे थप्पड़ मारते हुए): तुम नही सुधार सकते हो.
मैं: तो फिर तू सुधार दे नफीसा.
नफीसा: सेकेंड नही लगते तुम्हे भी आप से तुम और तुम से तू में.
मैं: सीधा बोलो आपको तो मज़ा आ रहा है अपने आपको माल सुनते हुए.
नफीसा: चुप बेशरम, तुम नाम से ही बुलाओ बोला ना.
मैं: ओक-ओक नफीसा मेरी माल.
नफीसा (अपने सिर पे हाथ मारते हुए): तुम्हारा कुछ नही हो सकता है. चलो बताओ छाई पियोगे या कॉफी?
मैं: हहा.. छाई कॉफी से ज़्यादा मुझे दूध पीना पसंद है.
नफीसा: अछा रूको मैं लेके आती हू.
नफीसा गांद मतकते हुए किचन में चली गयी. थोड़ी देर में मैं भी किचन में चला गया. मुझसे कंट्रोल नही हुआ, और मैने पीछे से आके नफीसा की गांद पकड़ ली.
नफीसा (अचानक से उछली, और गुस्से में बोली): हट्तो!
मैं (मैने नफीसा को एक-दूं स्लॅब पे पुश कर रखा था): अब मैं अपनी नफीसा माल को पकड़ भी नही सकता?
नफीसा: नही, ये ग़लत है. वहाँ से हाथ हटाओ चुप-छाप.
मैं (नफीसा की चुचियों को पकड़ के मसालते हुए पूछा): फिर यहाँ हाथ रख लू?
नफीसा: आ लॅविश, ये क्या कर रहे हो? छ्चोढ़ दो मुझे.
मैं: अपनी नफीसा डेरी से दूध निकाल रहा हू.
नफीसा: लॅविश ऐसा मत करो. मैं किसी को नही बतौँगी, हट्तो और चले जाओ.
मैं: जब किसी को पता ही नही चलना है, तो सब करके ही जाता हू (नफीसा की कुरती को खींच के फाड़ दिया सामने से).
नफीसा: नही मेरा वो मतलब नही था. तुम ग़लत समझ रहे हो. ये क्या किया? मेरी कुरती फाड़ दी. मेरे शौहर वैसे भी कपड़े नही दिलाते है, और तुमने जो है वो भी फाड़ दी.
मैं: अभी तो बहुत कुछ फटेगा मेरी जान.
नफीसा: आह आहह, लॅविश बस करो, जाने दो.
मैं (पीछे से नफीसा की गांद में लंड रगड़ते हुए गर्दन पर किस कर रहा था): अभी नही मेरी जान.
नफीसा ने बोलना बंद कर दिया अपनी सिसकियाँ च्छुपाने के लिए. मैने नफीसा की पाजामी का नाडा खोला. नफीसा ने झट से अपनी पाजामी पकड़ ली, और गिरने से रोक ली. मैने डाइरेक्ट अपना हाथ नफीसा की छूट पे रखा, और सहलाना शुरू किया.
नफीसा: उफफफफ्फ़ बस करो लवी, आ मत करो.
मैं (अपनी उंगलिया नफीसा की छूट पे फेरते हुए): तेरी छूट तो ना नही बोल रही है. इतनी गीली हो चुकी है, और अभी भी तुझे रुकना है?
नफीसा: नाह, मत करो आ.
मैं: तेरी छूट इतने मज़े क्यूँ ले रही है?
नफीसा (नफीसा उछाल उठी, और मेरे हाथ को पकड़ के मोन करने लगी): आअहह नही.
मैं बिना रुके नफीसा की छूट में उंगली अंदर-बाहर करते हुए उसकी गर्दन को चूम रहा था. नफीसा की छूट का पानी मेरे पुर हाथ में था. वो आँखें बंद करके मेरे हाथो को हल्के से पकड़ते हुए सिसका रही थी.
नफीसा: लॅविश आ… बस करो.
मैं (मैने नफीसा की छूट से अपनी उंगली बाहर निकली, और नफीसा को छ्चोढ़ दिया): ठीक है माँ, आपको नही पसंद तो मैं जेया रहा हू.
मेरे छ्चोढते ही नफीसा फ्लोर पे गिर गयी. वो कुछ बोल पाती उससे पहले मैं चला गया.
फिलहाल के लिए इतना ही. अगले पार्ट में पढ़िएगा कैसे मैने नफीसा को अपनी रंडी बनाया.